Friday, September 30, 2022

इब्रानियों के नाम पत्र, अध्याय - 9 | हिंदी बाइबिल पाठ - Letter Hebrews, Chapter - 9 | Hindi Bible Reading

                   


इब्रानियों के नाम पत्र

अध्याय - 9


पहले विधान की उपासना

1) पहले विधान के भी अपने उपासना सम्बन्धी नियम थे और उसका अपना पार्थिव मन्दिर भी था।
2) एक तम्बू खड़ा कर दिया गया था। उसके अगले कक्ष में दीपाधार था, मेज़ थी और भेंट की रोटियाँ थीं। वह मन्दिर-गर्भ कहलाता था।
3) दूसरे परदे के पीछे का कक्ष परमपावन मन्दिर-गर्भ कहलाता था।
4) वहाँ धूपदान की स्वर्ण से मढ़ी हुई मंजूषा थी। मंजूषा में मन्ना से भरा हुआ स्वर्णमय पात्र था, हारून की छड़ी थी, जो पल्लवित हो उठी थी और विधान की पाटियाँ थी,
5) और मंजूषा के ऊपर प्रायश्चित का स्थान आच्छादित करने वाले महिमामय केरूबीम विराजमान थे। इन सब का विस्तृत विवरण यहाँ अपेक्षित नहीं हैं।
6) यही मन्दिर की व्यवस्था थी। उपासना की विधियाँ सम्पन्न करने के लिए याजक हर समय उसके अगले कक्ष में जाया करते थे,
7) किन्तु प्रधानायाजक ही, वर्ष में एक बार, पिछले कक्ष में वह रक्त लिये प्रवेश करता था, जिसे वह अपने और प्रजा के दोषों के लिए प्रायश्चित के रूप में चढ़ाता था।
8) इस प्रकार पवित्र आत्मा यह दिखलाना चाहता है कि जब तक पहला तम्बू खड़ा है, तब तक परमपावन मन्दिरगर्भ का मार्ग खुला नहीं है।
9) वह वर्तमान समय का प्रतीक है। वहाँ जो भेंट और बलिदान चढ़ाये जाते हैं, वे चढ़ाने वाले को आभ्यन्तर पूर्णता तक नहीं पहुँचा सकते।
10) वे बाह्य नियम हैं, जो खान-पान एवं नाना प्रकार की शुद्धीकरण-विधियों से सम्बन्ध रखते हैं और सुधार के समय तक ही लागू हैं।

मसीह का बलिदान

11) किन्तु अब मसीह हमारे भावी कल्याण के प्रधानयाजक के रूप में आये हैं और उन्होंने एक ऐसे तम्बू को पार किया, जो यहूदियों के तम्बू से महान् तथा श्रेष्ठ है, जो मनुष्य के हाथ से नहीं बना और इस पृथ्वी का नहीं है।
12) उन्होंने बकरों तथा बछड़ों का नहीं, बल्कि अपना रक्त ले कर सदा के लिए एक ही बार परमपावन स्थान में प्रवेश किया और इस तरह हमारे लिए सदा-सर्वदा रहने वाला उद्धार प्राप्त किया है।
13) याजक बकरों तथा सांड़ों का रक्त और कलोर की राख अशुद्ध लोगों पर छिड़कता है और उनका शरीर फिर शुद्ध हो जाता है। यदि उस में पवित्र करने की शक्ति है,
14) तो फिर मसीह का रक्त, जिसे उन्होंने शाश्वत आत्मा के द्वारा निर्दोष बलि के रूप में ईश्वर को अर्पित किया, हमारे अन्तःकरण को पापों से क्यों नहीं शुद्ध करेगा और हमें जीवन्त ईश्वर की सेवा के योग्य बनायेगा?
15) मसीह पहले विधान के समय किये हुए अपराधों की क्षमा के लिए मर गये हैं और इस प्रकार वह एक नये विधान के मध्यस्थ हैं। ईश्वर जिन्हें बुलाते हैं, वे अब उसकी प्रतिज्ञा के अनुसार अनन्त काल तक बनी रहने वाली विरासत प्राप्त करते हैं।
16) वसीयतनामें के विषय में वसीयतकर्ता की मृत्यु का प्रमाणपत्र देना पड़ता है, क्योंकि मृत्यु के बाद ही वसीयतनामा कारगर होता है।
17) जब तक वसीयतकर्ता जीवित है, तब तक वसीयतनामा कारगर नहीं होता।
18) इसलिए रक्त के बिना प्रथम विधान का प्रवर्तन नहीं हुआ था;
19) क्योंकि जब मूसा ने सारी प्रजा के सामने संहिता की सब आज्ञाओं को पढ़ कर सुनाया था, तो उन्होंने जल, लाल ऊन और जूफ़े के साथ बछड़ों और बकरों का रक्त ले लिया था और उसे संहिता के ग्रन्थ और सारी प्रजा पर छिड़कते हुए
20) कहा था- यह उस विधान का रक्त है, जिसे ईश्वर ने तुम लोगों के लिए निर्धारित किया है।
21) उन्होंने तम्बू और उपासना में प्रयुक्त सभी पात्रों पर वह रक्त छिड़क दिया था।
22) संहिता के अनुसार प्रायः सब कुछ रक्त द्वारा शुद्ध किया जाता है और रक्तपात के बिना क्षमा नहीं मिलती।
23) जो चीजें स्वर्ग की चीजों की प्रतीक मात्र थीं, यदि उनका शुद्धीकरण इस प्रकार की विधियों द्वारा आवश्यक था, तो स्वर्ग की चीजों के लिए एक श्रेष्ठतर बलिदान आवश्यक था।

स्वर्ग में मसीह का प्रवेश

24) क्योंकि ईसा ने हाथ के बने हुए उस मन्दिर में प्रवेश नहीं किया, जो वास्तविक मन्दिर का प्रतीक मात्र है। उन्होंने स्वर्ग में प्रवेश किया है, जिससे वह हमारी ओर से ईश्वर के सामने उपस्थित हो सकें।
25) प्रधानयाजक किसी दूसरे का रक्त ले कर प्रतिवर्ष परमपावन मन्दिर-गर्भ में प्रवेश करता है। ईसा के लिए इस तरह अपने को बार-बार अर्पित करने की आवश्यकता नहीं है।
26) यदि ऐसा होता तो संसार के प्रारम्भ से उन्हें बार-बार दुःख भोगना पड़ता, किन्तु अब युग के अन्त में वह एक ही बार प्रकट हुए, जिससे वह आत्मबलिदान द्वारा पाप को मिटा दें।
27) जिस तरह मनुष्यों के लिए एक ही बार मरना और इसके बाद उनका न्याय होना निर्धारित है,
28) उसी तरह मसीह बहुतों के पाप हरने के लिए एक ही बार अर्पित हुए। वह दूसरी बार प्रकट हो जायेंगे- पाप के कारण नहीं, बल्कि उन लोगों को मुक्ति दिलाने के लिए, जो उनकी प्रतीक्षा करते हैं।

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